नव किरण

नव किरण, नव पुष्प, नव तृण
नव उषा का आगमन है,
कुंज, तट और वाटिका पर
रश्मियों का आवरण है,
नील के इस उच्च पट पर
विहग वृन्दो का गमन,
यह सब प्रकृति के हर्ष में
डूबे हुए मन का कथन है,
दूर से आती हुई वह
भास्कर की लाल रेखा ,
जीव के उल्लास और
उसकी निराशा का शमन है ,
खो चुका था जो प्रकाशित
जीवनी का अंश उत्तम ,
निशा में डूबा हुआ था
शांति मिश्रित व्यर्थ का श्रम ,
उसके फिर से भानु की
धारा में खोने का प्रक्रम है,
यह विलोपन दीप्त है
यह जीवनी का महत श्रम है ।
प्रांशु वर्मा 

टिप्पणी करे

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें